एक ही कमरे में
खाना-पीना,रोना-धोना,रहना-सोना
एक मंगते ने सपने में घर
देखा भी तो ऐसा देखा
जब से सुना हैं जमाने में
चल रही है बुरी हवा
मैंने तब से अपने घर की
खिड़की भी नहीं खोली
घर के जिस कोने में जाते
दीवारों से लग जाते हैं
बूढ़े लोग मरने से पहले ही
तस्वीरें हो जाते हैं
एक फौजी जिसकी दुल्हन की
हीना भी नहीं सुखी अभी
कल जिहादी जंग का वो पहला
कलेवा हो गया
अमीरों के गुसलखानों में जो
कीड़ों सा पड़ा रहता था
सुना है ओढ़ के खद्दर अब वो
फकीरों का नेता हो गया
भूखे नंगे बच्चे जो सड़कों
और फूटपाथों पर सोतें हैं
उनकी खातिर मक्के के दो
दाने भी सब कुछ होते हैं
अना को मार दे लावारिसों की
लाश हो जा
या खद्दर ओढ़ ले तू भी गधो
में ख़ास हो जा
जिसकी बेटियां तो मौज करती
सासरे में
और बहुएँ रोज रोती हैं तू
वैसी सास हो जा
वो आसमाँ के रंग में उलझा
हुआ है
उसको जमीं की कालिखो का
क्या पता है
माँ जो मुझको दे रही है
गालियाँ
उसके मन में मेरी खातिर बस
दुआ है
अपने दामन को कभी भी गौर से
देखा नहीं
दूसरों के जिस्म के बस दाग
मैं गिनता रहा
सब गिरेंगे,सांस की चोटी पे
ठहरा कौन है
लोग जब मरने लगे मैं मौत पर
हँसता रहा
मैं मसानो में बची मुर्दों
की हड्डी सा रहा
कुछ तो गंगा में मिला कुछ
खाक बन उड़ता रहा
वो बड़े लोग हैं उन्हें माफ़
है हजारों क़त्ल
मैं फकीर हूँ गुनाह कोई करे
इल्जाम मुझ ही पे आएगा
इन महलों की दीवारों से मौन
सुनाई देता है
फूटपाथों पर जाकर देखो
मुल्क दिखाई देता है
भूखे नंगे फिरते है सच के
साहूकार सभी
पत्थर पूजे जाते है इंसान
दुहाई देता है
खिलौने तोड़ के खंजर थमा
दिया मुझे
मेरे मजहब ने ही कातिल बना
दिया मुझे
माँ की गोद में था तब तक
संभला हुआ था
जमाने से मिला तो जमाने ने
बहका दिया मुझे
मेरी आवाज मेरा चेहरा महक
भी मुझ सी
मैंने खुद में ही छुपा रखा
है गुनाहगार खुद का
मसीहा मत बनाओ तुम मुझे
इंसान रहने दो
मुझे पहचान की चाहत नहीं
अंजान रहने दो
सयानापन समझदारी मुबारक हो
तुम्हे सारी
न सिखलाओ मुझे ये सब मुझे
नादान रहने दो
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