Thursday, 9 May 2013

incomplete work 3


किसी को बहुत बुरा किसी को भला लगता हूँ मैं
जो भी जैसा है बस उसे वैसा ही लगता हूँ मैं

रुक भी जाओ!सुनो कुछ मेरी बात भी,रूठ कर जा रहे हो बिना बात के
गैर की बात पर कर दिया फैसला,  मायने क्या रहे फिर मुलाक़ात के

वक़्त पड़ने पे टूट जाते है,उसूल बच्चो के गुल्लक की तरह होते है

आस की माला टूटी मोरी सुपन के मोती बिखरे रे
मेरे चौक का चाँद चुराकर घोर अँधेरे उतरे रे

बातों बातों में ही सही कह दिया उसने
इश्क नहीं अहसान किया था मुझपर

मैं मरूँगा तो किताबों में लिखा जाऊंगा
मैं जियूँगा तो किताबों सा लिखा जाऊंगा

कुछेक दुपट्टे और बस एक ख़ूबसूरत नाम
बेटियों के हिस्से में और बपौती नहीं आती
जब भी आती है लाती है हज़ारों लफड़े
जवानी दिमागों-बदन में अकेले नहीं आती
लुटना चाहे तो लुट सकता है इशारों में शहर को
हुस्न वाले को मगर ऐसी डकैती नहीं आती

ख़ामोशी में शोर छुपा है ये कैसे पहचानूँगा
मेरे मन में चोर छुपा है ये भी कैसे जानूँगा
मेरे आगे कोई रख दो शीशा एक मोहब्बत का
मैं क्या हूँ और कैसा है वो बोलेगा मैं मानूंगा

इश्क फिर से अब नहीं होगा
हुस्न तेरा असर नहीं होगा
नींद ली है तो जान भी ले लो
जागकर अब गुजर नही होगा

मौत भी तो जश्न है जो जिंदगी खोकर मिला
छोड़कर साँसे करोडो,हो गया हूँ लाश मैं
सब खड़े है और सबमें,सो रहा हूँ ख़ास मैं

कितने नए शहर कितने नए मकाँ
कितनी ही बार ये थम थम के चली है
ज़िन्दगी मेरी जोगियों के कारवां सी हैं

ज़िन्दगी के सब ग़मों को झेलकर
मौत से मिलकर लगा के जश्न हो

हाँ मैं बेचता हूँ इश्क,खरीदोगे तो ये सुन लो
वफ़ा का दाम है और दूकां मेरे दिल में लगी है

ज़िन्दगी में बढ़ रही दुश्वारियां
मौत से करने लगा हूँ यारियां

सब जैसा बनने की कोशिश करते-करते
अब तो ये भी भूल गया के मैं कैसा था
देखा एक सीधे बच्चे को आज बिगड़ते
मुझको आया याद कभी मैं भी ऐसा था
सबको मुझसे प्यार मुझे खुदसे ही नफरत
पहले खुदको प्यारा था मैं चाहे जैसा था

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