Monday, 20 May 2013

ओ!चिड़िया


अलमारियों में उथले पड़े है सारे कपडे
टेबल की दराजो में सड गए है सभी कागज
दीवार पर लगा कश्मीर कहें मानो उजड़ गया हो वहाँ का स्वर्ग
कमरे का रंग भी आज उखड़ा उखड़ा है
किताबों की शेल्फ पे चढ़ गयी है मिट्टी
जिस थैले में छुपा रखे थे मैंने तुम्हारे होंठों के छुए कॉफ़ी के कप
उसके सब रेश बिखर गए है घर के कोनो में
जब से छोड़ के गयी हो ह्रदय का कोटर तुम ओ!सुगन चिड़िया
तुम्हारा ये खिलखिलाता पेड़ भी तब से बहुत उदास है

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