ये बारिशें तो कुछ भी तबाह नहीं करती
तबाह करते है तो वो सैलाब जो बरसो से
दबे होते है पलकों की कोरो में
लगा रहता है हर पल डर के
किसी की बस एक थपकी से कहीं
बाहर न आ जाये के जैसे कोई जलजला हो
कहीं कहदे न वो सब कुछ छूपा रखा है जो सब से
बारिशों से तो अक्सर खुश होते है लोग,मगर
ये जलजला आया कभी तो
मर जायेंगे मेरी माँ के सिरहाने रखे ख्वाब
टूट जायेंगे पिताजी की आस के चश्मे
बहनों की राखीयाँ ढूंढेगी मेरा हाथ फिर तो
दोस्तों संग चाय की सब चुस्कियां हो जाएगी
बेस्वाद
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