Wednesday, 7 August 2013

बस!एक बूँद


बस! एक बूँद बारिश की गिरी आकर हथेली पर
के जैसे बो गयी थी तुम बरसो पहले
तुम्हारी याद के बीज
उग आयी धीमें-धीमें फसल पूरी
मेरे जेहन की बंजर सी जमीन पर
कुछ खास था शायद इनमें
बिना मेहनत के लहलहा गया खेत पूरा
और मैं चल पड़ा खेत के ठन्डे सफ़र में
तभी एक बूंद से छूटा तुम्हारा साथ फिर से
मुझे फिर याद आया वो वक़्त भी तो बूंद ही था
जो ठहरा था आँखों में वो फिर छलका हथेली में  

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