Monday, 20 May 2013

ओ!चिड़िया


अलमारियों में उथले पड़े है सारे कपडे
टेबल की दराजो में सड गए है सभी कागज
दीवार पर लगा कश्मीर कहें मानो उजड़ गया हो वहाँ का स्वर्ग
कमरे का रंग भी आज उखड़ा उखड़ा है
किताबों की शेल्फ पे चढ़ गयी है मिट्टी
जिस थैले में छुपा रखे थे मैंने तुम्हारे होंठों के छुए कॉफ़ी के कप
उसके सब रेश बिखर गए है घर के कोनो में
जब से छोड़ के गयी हो ह्रदय का कोटर तुम ओ!सुगन चिड़िया
तुम्हारा ये खिलखिलाता पेड़ भी तब से बहुत उदास है

Thursday, 9 May 2013

incomplete work 3


किसी को बहुत बुरा किसी को भला लगता हूँ मैं
जो भी जैसा है बस उसे वैसा ही लगता हूँ मैं

रुक भी जाओ!सुनो कुछ मेरी बात भी,रूठ कर जा रहे हो बिना बात के
गैर की बात पर कर दिया फैसला,  मायने क्या रहे फिर मुलाक़ात के

वक़्त पड़ने पे टूट जाते है,उसूल बच्चो के गुल्लक की तरह होते है

आस की माला टूटी मोरी सुपन के मोती बिखरे रे
मेरे चौक का चाँद चुराकर घोर अँधेरे उतरे रे

बातों बातों में ही सही कह दिया उसने
इश्क नहीं अहसान किया था मुझपर

मैं मरूँगा तो किताबों में लिखा जाऊंगा
मैं जियूँगा तो किताबों सा लिखा जाऊंगा

कुछेक दुपट्टे और बस एक ख़ूबसूरत नाम
बेटियों के हिस्से में और बपौती नहीं आती
जब भी आती है लाती है हज़ारों लफड़े
जवानी दिमागों-बदन में अकेले नहीं आती
लुटना चाहे तो लुट सकता है इशारों में शहर को
हुस्न वाले को मगर ऐसी डकैती नहीं आती

ख़ामोशी में शोर छुपा है ये कैसे पहचानूँगा
मेरे मन में चोर छुपा है ये भी कैसे जानूँगा
मेरे आगे कोई रख दो शीशा एक मोहब्बत का
मैं क्या हूँ और कैसा है वो बोलेगा मैं मानूंगा

इश्क फिर से अब नहीं होगा
हुस्न तेरा असर नहीं होगा
नींद ली है तो जान भी ले लो
जागकर अब गुजर नही होगा

मौत भी तो जश्न है जो जिंदगी खोकर मिला
छोड़कर साँसे करोडो,हो गया हूँ लाश मैं
सब खड़े है और सबमें,सो रहा हूँ ख़ास मैं

कितने नए शहर कितने नए मकाँ
कितनी ही बार ये थम थम के चली है
ज़िन्दगी मेरी जोगियों के कारवां सी हैं

ज़िन्दगी के सब ग़मों को झेलकर
मौत से मिलकर लगा के जश्न हो

हाँ मैं बेचता हूँ इश्क,खरीदोगे तो ये सुन लो
वफ़ा का दाम है और दूकां मेरे दिल में लगी है

ज़िन्दगी में बढ़ रही दुश्वारियां
मौत से करने लगा हूँ यारियां

सब जैसा बनने की कोशिश करते-करते
अब तो ये भी भूल गया के मैं कैसा था
देखा एक सीधे बच्चे को आज बिगड़ते
मुझको आया याद कभी मैं भी ऐसा था
सबको मुझसे प्यार मुझे खुदसे ही नफरत
पहले खुदको प्यारा था मैं चाहे जैसा था

incomplete work 2


मुरझाई सी इन आँखों में भी कुछ ख्वाब जिंदा है
सच तब तक जियेगा जब तलक माहताब ज़िंदा है
तुम्हारे शहर के तो बुढ़ों की भी मर गयी इज्जत
हमारे गाँव के बच्चों में भी आदाब जिन्दा है
मेरे ख़ामोश होंठो की हया की मत टटोलो तुम
मेरी बातों के लहजे में अभी तेज़ाब ज़िंदा है
नहीं  उम्मीद मुझको के कभी मेरा भी होगा वो
मैं  जिन्दा हूँ अभी क्यूंकि मेरे माँ-बाप जिन्दा है

उलझने ही उलझने है ज़िन्दगी की डोर में
कितनी आहें दब गयी है इस शहर के शोर में
हर तरफ और हर जगह ये माजरा क्या है
या खुदा!तू ही बता तेरी रजा क्या है

मोहब्बत के शजर पे हवस के फूल आ रहे है
जज्बात की जमीन क्यूँ बंजर नहीं होती

इश्क गर गुनाह है दुनिया में
तो मैं शहंशाह हूँ गुनाहों का

अपनी परछाई को बनते बिगड़ते देखना
धुप को दीवार पर चढ़ते उतरते देखना
क्या खूब हालत है इस दुनिया में शख्श-ए-आम की
खुद के हाथो खुद के ही घर को बिखरते देखना

मैं तो एक अभागा हूँ मैंने न बचपन न यौवन देखा
मन के मयूरों की बस्ती ने सदा सुलगता सावन देखा
आशाओं की हत्या कर हर रोज समर्पण करता हूँ
मेरे सपनो के उपवन ने बस पतझड़ का ही मौसम देखा


इन ख़्वाबों पे अब मुझको कोई पहरा नहीं दिखता
जहाँ डूबा हूँ मैं उतना मुझे कुछ गहरा नहीं दिखता
नयी ये बात है या मेरे दिल का आइना है जिसमें
बस जिस्म दिखता है यार का चेहरा नहीं दिखता

मैं सनम काश तेरे कमरे का आईना होता
रोज ही देखता रहता तुझे संवरते हुए

जिसको समझा था मोहब्बत का मसीहा मैंने
एहसास की दौलत का भिखारी निकला वो शख्श

कांटो से निबाह की तो ख़ुशी भी मिली मुझे
फूलों से दोस्ती कर पछता रहा हूँ मैं
हर एक सांस पे निकलते थे आंसू मेरे
मौत मिलते ही खिलखिलाने लगा हूँ मैं   

ये लब कुछ और कहते है निगाहें कुछ बताती है
मेरे महबूब तुझको भी ठगी क्या खूब आती है

न ये अहसास बस में है न है ये लफ्ज़ भी मेरे
मैं लिखता हूँ वोही जो मुझे दुनिया सीखाती है

आशिकों पर सबसे बड़ा अहसान कर दो
साँसों का थामना ए खुदा!आसान कर दो
मेरे घर पे जश्न और उसके घर पे मातम
उसको किया है लाश तो मुझे श्मसान कर दो

अच्छा नहीं हूँ मैं कुछ-कुछ बुरा भी हूँ
मेरी फितरत को पढना है तो अपनी फितरत बदल के देख

incomplete work 1


एक ही कमरे में खाना-पीना,रोना-धोना,रहना-सोना
एक मंगते ने सपने में घर देखा भी तो ऐसा देखा

जब से सुना हैं जमाने में चल रही है बुरी हवा
मैंने तब से अपने घर की खिड़की भी नहीं खोली

घर के जिस कोने में जाते दीवारों से लग जाते हैं
बूढ़े लोग मरने से पहले ही तस्वीरें हो जाते हैं

एक फौजी जिसकी दुल्हन की हीना भी नहीं सुखी अभी
कल जिहादी जंग का वो पहला कलेवा हो गया
अमीरों के गुसलखानों में जो कीड़ों सा पड़ा रहता था
सुना है ओढ़ के खद्दर अब वो फकीरों का नेता हो गया  

भूखे नंगे बच्चे जो सड़कों और फूटपाथों पर सोतें हैं
उनकी खातिर मक्के के दो दाने भी सब कुछ होते हैं

अना को मार दे लावारिसों की लाश हो जा
या खद्दर ओढ़ ले तू भी गधो में ख़ास हो जा
जिसकी बेटियां तो मौज करती सासरे में
और बहुएँ रोज रोती हैं तू वैसी सास हो जा

वो आसमाँ के रंग में उलझा हुआ है
उसको जमीं की कालिखो का क्या पता है
माँ जो मुझको दे रही है गालियाँ
उसके मन में मेरी खातिर बस दुआ है




अपने दामन को कभी भी गौर से देखा नहीं
दूसरों के जिस्म के बस दाग मैं गिनता रहा
सब गिरेंगे,सांस की चोटी पे ठहरा कौन है
लोग जब मरने लगे मैं मौत पर हँसता रहा
मैं मसानो में बची मुर्दों की हड्डी सा रहा
कुछ तो गंगा में मिला कुछ खाक बन उड़ता रहा

वो बड़े लोग हैं उन्हें माफ़ है हजारों क़त्ल
मैं फकीर हूँ गुनाह कोई करे इल्जाम मुझ ही पे आएगा

इन महलों की दीवारों से मौन सुनाई देता है
फूटपाथों पर जाकर देखो मुल्क दिखाई देता है
भूखे नंगे फिरते है सच के साहूकार सभी
पत्थर पूजे जाते है इंसान दुहाई देता है

खिलौने तोड़ के खंजर थमा दिया मुझे
मेरे मजहब ने ही कातिल बना दिया मुझे
माँ की गोद में था तब तक संभला हुआ था
जमाने से मिला तो जमाने ने बहका दिया मुझे

मेरी आवाज मेरा चेहरा महक भी मुझ सी
मैंने खुद में ही छुपा रखा है गुनाहगार खुद का

मसीहा मत बनाओ तुम मुझे इंसान रहने दो
मुझे पहचान की चाहत नहीं अंजान रहने दो
सयानापन समझदारी मुबारक हो तुम्हे सारी
न सिखलाओ मुझे ये सब मुझे नादान रहने दो