नरसंहार बलात्कार व कई
दुर्व्यवहार जब जब होते है इस धरा पर
सहम के कांपती है ये धरा और
फिर इस तरह भूकंप आता है
भूख से मरता है जब बचपन
षड़यंत्र से लुटता है
सुहागिनों का सिंदूर
शहनाईयों के घर में जब
रुदाली काम आती है
तब हाय लगती है हाँ मनुवंश
को इनकी
हाँ समंदर का ह्रदय भी
छटपटाता है
और जलजले के साथ फिर सैलाब
आता है
खत्म होती है जब रिश्तो की
मर्यादा
सिमट के रह जाता है जब
प्रेम दैहिक अवयवो के बीच
क्रूरता छल लेती है जब किसी
के बालमन को
लालच कत्ल करती है जब ईमान
का
आसमान भी जमीन को तब
धिक्कारता है
एक-एक बादल हर किसान को
दुत्कारता है
और अन्न का दाना भी फिर
दुश्वार हो जाता है
भगवान के अस्तित्व पर जब
प्रश्न उठते है
देशरक्षक ही देश को जब
लुटते है
मानवता जब पैरों तले रौंदी
जाती है
वहशियों के हाथों में इज्जत
सौंप दी जाती है
भरे बाजार में तब नैतिकता
नीलाम होती है
हमारी ललनाओं की कोख भी
बदनाम होती है
बह निकलता है रोष गरम लावा
के रूप में
और फिर इस तरह ज्वालामुखी
विस्फोट होता है
बदलेंगे जब मानसिकता खत्म
होगा क्लेश भी
इस तरह तो न रहेंगे मनुष्य
के अवशेष भी
बदलना ही पड़ेगा अब हमें
हमारी पीढ़ियों के वास्ते
बंद करने होंगे अब
कुप्रवृतियो के रास्ते
वर्ना रामराज्य है कहाँ ये
तो राक्षसों की लंका है
कर दो “आत्ममंथन”अब शुरू, क्योंकि मुझे महाप्रलय की आशंका हैI
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