सीँच के कागज को स्याही से जो लफ्जो को बोती है
देखो आज ये कलम बिचारी अपनी हालत पे रोती है
नौसिखीयो के हाथो मेँ आ शब्दो के संकर बन जाते
चट्टानी चेहरे विस्फोटो से पल मेँ कंकर बन जाते
रोजाना अब मंचो पर भाषा की हत्या होती है
गीत विरह के गजल प्यार की जाने क्या-क्या
लिखती ये
इसकी ताकत बहुत बडी है चाहे बौनी दिखती ये
मनु-उर की सीपी से निकले इसके आखर मोती है
शाम हो गई सुर्य ढल गया आशातीत था वो दिवस टल गया
चुल्हे मेँ तो आग नही थी सो लेखक का भाग्य जल गया
फिर भी उसने कलम को चुमा शायद यही कसौटी है
नौसिखीयो के हाथो मेँ आ शब्दो के संकर बन जाते
चट्टानी चेहरे विस्फोटो से पल मेँ कंकर बन जाते
रोजाना अब मंचो पर भाषा की हत्या होती है
गीत विरह के गजल प्यार की जाने क्या-क्या
लिखती ये
इसकी ताकत बहुत बडी है चाहे बौनी दिखती ये
मनु-उर की सीपी से निकले इसके आखर मोती है
शाम हो गई सुर्य ढल गया आशातीत था वो दिवस टल गया
चुल्हे मेँ तो आग नही थी सो लेखक का भाग्य जल गया
फिर भी उसने कलम को चुमा शायद यही कसौटी है
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