Saturday, 24 December 2011

रात जोगनिया कितना रोई

रात जोगनिया कितना रोई,रात जोगनिया कितना रोई
सहमी-2 रही चाँदनी, बादल संग लिपटी और सोई
नशा चढा नयनोँ मेँ दिनभर
कैसे संभले वो गिर गिरकर 
मन के वेद पुराण सब भीगे 
बची घुली कागज की लोई
रात जोगनिया कितना रोई,रात जोगनिया कितना रोई
जोगी का तो कन्धा भीगा
और जोगन की पूरी गोदी
आंगन भी इतना गीला था
के जैसे पूरी दुनिया रोई
रात जोगनिया कितना रोई,रात जोगनिया कितना रोई
कई दिनों से छिटक रही थी
दुःख की डोरी आखिर टूटी
उन आँखों से मोती बिखरे
इन हाथो ने माला पोई
रात जोगनिया कितना रोई,रात जोगनिया कितना रोई

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