Monday, 26 December 2011

'राहरौ'

दिल मेँ दिल से दिल का कोई आह भरा अफसाना होगा
सुरत भले नयी हो फिर भी मेरा अक्स पुराना होगा
तीखी तेज दरो-दीवारेँ चीरेगी हरेक जिस्म
टीस होगी फस्ल की पर जख्म सालाना होगा
कूच करो अब इस दर से ये कस्बा कल वीराना होगा
बस्ती खंडहर हो जाएगी हर मंजर बेगाना होगा
तूफाँ होँगे अँधड होगा होगी बारिश कभी कहीँ
कुदरत का मुझे परखने को फिर कोई नया बहाना होगा
पहले पत्थर थे अब कांटे हैँ आगे राह भरी शोलो से
'राहरौ' जरा किस्मत से पुछो कब ये सफर सुहाना होगा

Saturday, 24 December 2011

रात जोगनिया कितना रोई

रात जोगनिया कितना रोई,रात जोगनिया कितना रोई
सहमी-2 रही चाँदनी, बादल संग लिपटी और सोई
नशा चढा नयनोँ मेँ दिनभर
कैसे संभले वो गिर गिरकर 
मन के वेद पुराण सब भीगे 
बची घुली कागज की लोई
रात जोगनिया कितना रोई,रात जोगनिया कितना रोई
जोगी का तो कन्धा भीगा
और जोगन की पूरी गोदी
आंगन भी इतना गीला था
के जैसे पूरी दुनिया रोई
रात जोगनिया कितना रोई,रात जोगनिया कितना रोई
कई दिनों से छिटक रही थी
दुःख की डोरी आखिर टूटी
उन आँखों से मोती बिखरे
इन हाथो ने माला पोई
रात जोगनिया कितना रोई,रात जोगनिया कितना रोई