Monday, 10 October 2011

" छलता रहा"


साथ मेरे दुर तक साया तेरा चलता रहा,
ख्वाहिशो की आड मेँ अरमाँ नया पलता रहा,
आजमाईश प्यार की तो हो गई थी राह मेँ,
जो कहा तुमने दिया और ये जहाँ जलता रहा

सुन के अपनी गर्म आहेँ शब सिसकियां भरती रही,
तेरे बदन पे मेरे लबोँ की शबनम भी बिखरती रही,
मौन रहकर चाँद ने भी फलक पे पहरा दिया,
हाँ मगर इस हुस्न पे फिर वो भी मचलता रहा

बाँहो का देके हार तुमने मुझको सीखाया प्यार तुमने,
उठती हुई पलके गिराकर मुझसे किया इकरार तुमने,
जाने लगा जब छोड तुमको हाय ! किया इनकार तुमने,
इन अदाओँ से संगदिल मैँ मोम सा ढलता रहा

मुझसे किए इजहार मेँ तुमने तो बातेँ चंद की,
हाँ मगर सब कह दिया जब अपनी ये आँखे बंद की,
लेकर तुम्हेँ आगोश मेँ मैँने उस खुदा को पा लिया
जो खुदा नजदीक रहकर भी मुझे छलता रहा

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